'वर्षा मंगल' में प्रस्तुत है 'जल-चक्र' से प्रेरित छंद मुक्त रचना -
---------------- नदी -----------------
उदगम : जन्म।
मार्ग : जीवन।
गंतव्य : मृत्यु ?
नहीं। सागर विलय।
फिर उसके बाद ?
उस असीम जलराशि से असंख्य जलकण, सूक्ष्म शरीर धर ,
मेघ का रूप ले, समस्त सृष्टि का उपरिलोकन करते हुए ,
पुनः जलकण बन, वर्षा के रूप में अवतरित हो ,
नदी को जन्म देते हैं, और क्रम चलता रहता है ,
सतत - निरंतर।
उद्देश्य :
प्राणिमात्र की प्यास बुझाना ? हाँ, वह तो है।
कृषि के लिए जल ? हाँ, वह भी है।
उपजाऊ मिट्टी का परिवहन ? हाँ, वह भी।
वायुमंडल के घुलनशील अवयवों का धरवातरण ? हाँ, वह भी।
खनिज संतुलन ? हाँ, वह भी।
यातायात का साधन ? हाँ, वह भी।
इस प्रकार, अनगिनत "हाँ वह भी"।
इतने सारे उद्देश्य अपने - अपने में चाहे नगण्य प्रतीत हों, किन्तु मिल कर
ठोस उद्देश्य का महासागर ही तो है।
--- वी. सी. राय 'नया'
---------------- नदी -----------------
उदगम : जन्म।
मार्ग : जीवन।
गंतव्य : मृत्यु ?
नहीं। सागर विलय।
फिर उसके बाद ?
उस असीम जलराशि से असंख्य जलकण, सूक्ष्म शरीर धर ,
मेघ का रूप ले, समस्त सृष्टि का उपरिलोकन करते हुए ,
पुनः जलकण बन, वर्षा के रूप में अवतरित हो ,
नदी को जन्म देते हैं, और क्रम चलता रहता है ,
सतत - निरंतर।
उद्देश्य :
प्राणिमात्र की प्यास बुझाना ? हाँ, वह तो है।
कृषि के लिए जल ? हाँ, वह भी है।
उपजाऊ मिट्टी का परिवहन ? हाँ, वह भी।
वायुमंडल के घुलनशील अवयवों का धरवातरण ? हाँ, वह भी।
खनिज संतुलन ? हाँ, वह भी।
यातायात का साधन ? हाँ, वह भी।
इस प्रकार, अनगिनत "हाँ वह भी"।
इतने सारे उद्देश्य अपने - अपने में चाहे नगण्य प्रतीत हों, किन्तु मिल कर
ठोस उद्देश्य का महासागर ही तो है।
--- वी. सी. राय 'नया'