Tuesday 26 June 2012

HISAB

हिसाब 

क्या खोया क्या पाया हमने, आज हिसाब लगाया हमने।
मुट्ठी में ले चंद लकीरें, जीवन अनुपम पाया हमने।
जमा-खर्च के दो कॉलम का खाता एक बनाया हमने।
जो-जो पाया जमा किया, जो खर्च किया दिखलाया हमने।
प्यार-दुलार बड़ों से पाया, उन्होंने जीना भी सिखलाया,
विद्या, अनुभव, संस्कार, सब उन लोगों से पाया हमने।
युवा हुए तो पत्नी पाई, प्रेम ने जीवन को महकाया,
त्याग, समर्पण, सखाभाव, जीवन संबल सब पाया हमने।
खट्टे-मीठे अनुभव पाए , गुड्डे-गुड़िया बच्चे पाए ,
हँसना-रोना  देख-बाँट बच्चों का सब सुख पाया हमने।
मात -पिता की सेवा कर आशीर्वाद ढेरों पाए,
मदद जो की मित्रों दुखियों की, नाम और पुण्य कमाया हमने।
खाता  खोल के आज जो देखा, तो हैरानी होती है,
खाते के हर पेज पे केवल जमा - जमा ही पाया हमने।
खर्च का कॉलम सूना पाकर सोचा क्या कुछ खर्च नहीं ?
खर्च किया क्या? क्या थे लाए, इस पर ध्यान लगाया हमने।
खर्च तो की हैं बस कुछ साँसें, जो लिखवा कर लाए थे,
खोए हैं कुछ अवसर केवल जिनका लाभ न पाया हमने।
क्या खोया क्या पाया हमने, आज हिसाब लगाया हमने।
मुट्ठी में ले चंद लकीरें, जीवन अनुपम पाया हमने।

- वी. सी. राय 'नया'