रंग भर दोगे तो तस्वीर बोल उठ्ठेगी .
ख्वाब रंग जाएँ तो तक़दीर बोल उठ्ठेगी .
ख़त मेरा फाड़ के फेंके या जला दे इसको ,
उसके तो ज़ेहन में तहरीर बोल उठ्ठेगी .
अब जो बेदाद बढ़ेगी तो समझ लो इकदिन,
पीर बन जाएगी शमशीर बोल उठ्ठेगी .
अम्न भी चाहिए दहशत पे सियासत ही नहीं,
जग की हर वादिए कश्मीर बोल उठ्ठेगी .
ख्वाब जो देखो 'नया' रक्खो अगर उनपे यकीं,
ज़िन्दगी ख़ुद ही है ताबीर बोल उठ्ठेगी .
ज़ुल्म पर ज़ुल्म वो सौ बार किये जाते हैं।
हम तो बस प्यार फ़क़त प्यार किये जाते हैं।
अब जो ज़ुल्मात बढ़ेंगे तो समझ लो इकदिन,
पीर बन जाएगी शमशीर बोल उठ्ठेगी।
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