Wednesday 13 March 2013

Rang Holi ka

दोस्तों ! होली तो आ ही गई। सबको शुभकामनाओं के साथ सादर प्रस्तुत है -
---------- एक होली ऐसी भी ------------
रंग  होली  का  तेरे  गालों  पे आया  होता।
मैंने गर नग़मा मोहब्बत का सुनाया होता।
हाथ अगर मैंने तेरी सिम्त बढ़ाया  होता।
तूने रुख़ झट से हथेली में छिपाया होता।
तेरी आँखों में दिवाली सी चमकने लगती,
मेरे आने की ख़बर कोई जो लाया होता।
मुझको भी होली पे दो दिन की तो छुट्टी मिलती,
डिग्रियों ने जो कहीं काम दिलाया होता।
आज महफ़िल में तो तू झूम के नाची होती,
मेरी ग़ज़लों ने 'नया' रंग जमाया होता।
--- वी . सी . राय 'नया'

Monday 4 March 2013

Kya Hun, Kyun Hun

छोटी बहर में चार मतले व एक शेर की ग़ज़ल देख कर कृपया सुझाव / प्रतिक्रिया व्यक्त करें -
----------- ग़ज़ल ----------
क्या हूँ, क्यों हूँ, किससे पूछूँ ?
ज्ञानी इतना किसको मानूँ ?
मंज़िल न दिखे, चलता जाऊँ ?
आख़िर कबतक मन भरमाऊँ ?
बेहतर होगा तुझको सोचूँ।
मानूँ तुझको, तुझको समझूँ।
सरबस अपना तुझको सौंपूँ।
तुझमे घुलमिल सब झुठलाऊँ।
झूट है सब, सच केवल तू है,
ख़ुद को 'नया' कैसे समझाऊँ।

--- वी. सी. राय 'नया'

हुमा जी ! कृपया इन शेरों की बहर चेक करके राय दें। मेरा 'तक्ती ' करना भी देख कर ग़लती बताएं  -
 २    २         २     २     २     २    २   २      (फ़े लुन  x  ४ )
मं  ज़िल   न दि  खे, चल  ता  जा  ऊँ ?
आ ख़िर    कब  तक मन भर  मा  ऊँ ?
सब झू      ट ह   सच  के  वल  तू    है,
ख़ुद कु न   या     कै   से  सम  झा  ऊँ।

Ham Tum  में शरद तैलंग जी की इस ग़ज़ल पर टिपण्णी भी देख लीजियेगा। पूरी ग़ज़ल है -
क्या हूँ, क्यों हूँ, किससे पूछूँ ?
ज्ञानी इतना किसको मानूँ ?
मंज़िल न दिखे, चलता जाऊँ ?
आख़िर कबतक मन भरमाऊँ ?
बेहतर होगा तुझको सोचूँ।
मानूँ तुझको, तुझको समझूँ।
सरबस अपना तुझको सौंपूँ।
तुझमे घुलमिल सब झुठलाऊँ।
सब झूट है, सच केवल तू है,
ख़ुद को 'नया' कैसे समझाऊँ।
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