Monday, 4 March 2013

Kya Hun, Kyun Hun

छोटी बहर में चार मतले व एक शेर की ग़ज़ल देख कर कृपया सुझाव / प्रतिक्रिया व्यक्त करें -
----------- ग़ज़ल ----------
क्या हूँ, क्यों हूँ, किससे पूछूँ ?
ज्ञानी इतना किसको मानूँ ?
मंज़िल न दिखे, चलता जाऊँ ?
आख़िर कबतक मन भरमाऊँ ?
बेहतर होगा तुझको सोचूँ।
मानूँ तुझको, तुझको समझूँ।
सरबस अपना तुझको सौंपूँ।
तुझमे घुलमिल सब झुठलाऊँ।
झूट है सब, सच केवल तू है,
ख़ुद को 'नया' कैसे समझाऊँ।

--- वी. सी. राय 'नया'

हुमा जी ! कृपया इन शेरों की बहर चेक करके राय दें। मेरा 'तक्ती ' करना भी देख कर ग़लती बताएं  -
 २    २         २     २     २     २    २   २      (फ़े लुन  x  ४ )
मं  ज़िल   न दि  खे, चल  ता  जा  ऊँ ?
आ ख़िर    कब  तक मन भर  मा  ऊँ ?
सब झू      ट ह   सच  के  वल  तू    है,
ख़ुद कु न   या     कै   से  सम  झा  ऊँ।

Ham Tum  में शरद तैलंग जी की इस ग़ज़ल पर टिपण्णी भी देख लीजियेगा। पूरी ग़ज़ल है -
क्या हूँ, क्यों हूँ, किससे पूछूँ ?
ज्ञानी इतना किसको मानूँ ?
मंज़िल न दिखे, चलता जाऊँ ?
आख़िर कबतक मन भरमाऊँ ?
बेहतर होगा तुझको सोचूँ।
मानूँ तुझको, तुझको समझूँ।
सरबस अपना तुझको सौंपूँ।
तुझमे घुलमिल सब झुठलाऊँ।
सब झूट है, सच केवल तू है,
ख़ुद को 'नया' कैसे समझाऊँ।
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