Thursday, 15 March 2012

Ghazal Zara Sa

-------------------- ग़ज़ल ------------------------

तेरी जुल्फों से मेरी साँस महक जाय ज़रा सा। .
मेरी ग़ज़लों में तेरा हुस्न झलक जाय ज़रा सा।

आँख खोलूँ कि करूँ बंद कि दरपन देखूँ ,
मेरी नज़रों में तेरा अक्स चमक जाय ज़रा सा। 

अपनी साँसों को ज़रा रोक के रखना होगा ,
साँस  छूटे तो तेरा परदा सरक जाय ज़रा सा। 

तेरा घर ढूँढता भटका हूँ मैं शहरों शहरों ,
अब तो यह आँख किसी दर पे अटक जाय ज़रा सा।

ज़र्फे मैनोशी  पे मग़रूर 'नया' है कितना ,
इक नज़र डाल इधर वो भी बहक जाय ज़रा सा।

---- वी. सी. राय 'नया'

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