-------------------- ग़ज़ल ------------------------
तेरी जुल्फों से मेरी साँस महक जाय ज़रा सा। .
मेरी ग़ज़लों में तेरा हुस्न झलक जाय ज़रा सा।
आँख खोलूँ कि करूँ बंद कि दरपन देखूँ ,
मेरी नज़रों में तेरा अक्स चमक जाय ज़रा सा।
अपनी साँसों को ज़रा रोक के रखना होगा ,
साँस छूटे तो तेरा परदा सरक जाय ज़रा सा।
तेरा घर ढूँढता भटका हूँ मैं शहरों शहरों ,
अब तो यह आँख किसी दर पे अटक जाय ज़रा सा।
ज़र्फे मैनोशी पे मग़रूर 'नया' है कितना ,
इक नज़र डाल इधर वो भी बहक जाय ज़रा सा।
---- वी. सी. राय 'नया'
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