Tuesday 21 August 2012

MANUHAAR

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर बधाइयों के साथ उनकी छवि को प्रतीक मानकर प्रस्तुत है  :
---------------------  मनुहार  ----------------------
तुम नेह भरी बदरी बनकर बरसो मेरे मन उपवन  में।
मन एकाकी जलता जंगल, ज्यों जेठ छुपा हो सावन में।
फिर श्याम घटा छाई नभ में, इक हूक सी उट्ठी तनमन में।
कब कान सुनेंगे बोल तेरे, कब बंसी बजेगी मधुवन में।
बृज भू ही नहीं भारत ही नहीं, धरती ही नहीं यह सृष्टि सकल,
गुंजित है बंसी से तेरी, सुन पाऊँ मैं इस जीवन में।
इक बार झलक देखी तेरी, चिर प्यास जगी प्रिय दर्शन की,
क्यों नीर भरी गगरी धर दी, मेरे प्यासे दो नैनन में।
चलते-थमते, गिरते-उठते आ पहुँचा तेरे द्वार 'नया',
आ बाँह पकड़ सीने से लगा, धड़कन पैदा कर पाहन में।
---- वी.सी. राय 'नया'

Sunday 19 August 2012

EID MUBARAK

सभी दोस्तों को ईद की मुबारकबाद के साथ एक दुआ :-
कोई न भूखा रहे अल्ला।
भाईचारा बढ़े अल्ला।
नाम तिरे ईश्वर अल्ला।
सबको सन्मति दे अल्ला।

आखिरी मिसरे से अगर महात्मा गाँधी की याद आए तो दाद दीजिएगा।
---- वी.सी. राय 'नया'

SABHI DOSTON KO EID KI MUBARAKBAD KE SATH EK DUA :-
KOI N BHUKHA RAHE ALLA.
BHAICHARA BARHE ALLA.
NAAM TERE ISHWAR ALLA.
SABKO SANMATI DE ALLA.

Akhiri misre se agar Mahatma Gandhi ki yaad aae to dad dijiyega.
---- V.C. Rai 'Naya'





 



Thursday 16 August 2012

NAMAN

गणतंत्र दिवस की बधाई के साथ एक ग़ज़ल के माध्यम से प्रस्तुत है :
-------------- स्वदेश नमन ----------------
सिख-हिंदु-मुसलमान-इसाई का कथन है।
ये मेरा वतन, तेरा वतन, सबका वतन है।

इस देश की धरती को मेरा कोटि नमन है।
उड़ने को दिया जिसने ये उन्मुक्त गगन है।

चाहूँ तो मैं आकाश के तारों को भी छू लूँ ,
फैलाए  हुए  पंख  मिरे  साथ  पवन है।

जीवों ने, वनों, नदियों, पहाड़ों ने सजाया,
मानव की सृजन शक्ति ने महकाया चमन है।

खेतों में फसल, मिल में जो उत्पाद बहुत हैं,
खुशहाल हुआ देश तो दुनिया को जलन है।

भाई को लड़ा भाई से 'कुरुक्षेत्र' बना दे ,
दुनिया में सियासत का 'नया' ऐसा चलन है।

ये मेरा वतन, तेरा वतन, सबका वतन है।  
इस देश की धरती को मेरा कोटि नमन है।  
---- वी.सी. राय 'नया'

स्वतंत्रता दिवस की सभी दोस्तों को बधाई के साथ एक ग़ज़ल के माध्यम से प्रस्तुत है भारतमाता की व्यथा

---------- माँ की व्यथा -----------

गीत  मेरे अब  कोई  गाता  नहीं।
सत्य कडुआ है तभी भाता नहीं।
रक्त से क्यों रँग रहे आंचल मेरा,
श्वेत-भगवा-हरित क्यों भाता नहीं?
इतनी दीवारें हैं खिंचती जा रही,
अब तो आँगन ही नज़र आता नहीं।
आग औ तूफ़ान चारो और क्यों?
हाथ किसका है नज़र आता नहीं।
आइना दिल का भी धुंधला हो गया,
अपना चेहरा ही नज़र आता नहीं।
मैंने चौराहे पे रक्खा है दिया,
लैम्प कोई राह दिखलाता नहीं।
अब तो आ जाओ मुजस्सिम सामने,
अब तसव्वुर दिल को बहलाता नहीं।

---- वी.सी. राय 'नया'






























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