श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर बधाइयों के साथ उनकी छवि को प्रतीक मानकर प्रस्तुत है :
--------------------- मनुहार ----------------------
तुम नेह भरी बदरी बनकर बरसो मेरे मन उपवन में।
मन एकाकी जलता जंगल, ज्यों जेठ छुपा हो सावन में।
फिर श्याम घटा छाई नभ में, इक हूक सी उट्ठी तनमन में।
कब कान सुनेंगे बोल तेरे, कब बंसी बजेगी मधुवन में।
बृज भू ही नहीं भारत ही नहीं, धरती ही नहीं यह सृष्टि सकल,
गुंजित है बंसी से तेरी, सुन पाऊँ मैं इस जीवन में।
इक बार झलक देखी तेरी, चिर प्यास जगी प्रिय दर्शन की,
क्यों नीर भरी गगरी धर दी, मेरे प्यासे दो नैनन में।
चलते-थमते, गिरते-उठते आ पहुँचा तेरे द्वार 'नया',
आ बाँह पकड़ सीने से लगा, धड़कन पैदा कर पाहन में।
---- वी.सी. राय 'नया'
--------------------- मनुहार ----------------------
तुम नेह भरी बदरी बनकर बरसो मेरे मन उपवन में।
मन एकाकी जलता जंगल, ज्यों जेठ छुपा हो सावन में।
फिर श्याम घटा छाई नभ में, इक हूक सी उट्ठी तनमन में।
कब कान सुनेंगे बोल तेरे, कब बंसी बजेगी मधुवन में।
बृज भू ही नहीं भारत ही नहीं, धरती ही नहीं यह सृष्टि सकल,
गुंजित है बंसी से तेरी, सुन पाऊँ मैं इस जीवन में।
इक बार झलक देखी तेरी, चिर प्यास जगी प्रिय दर्शन की,
क्यों नीर भरी गगरी धर दी, मेरे प्यासे दो नैनन में।
चलते-थमते, गिरते-उठते आ पहुँचा तेरे द्वार 'नया',
आ बाँह पकड़ सीने से लगा, धड़कन पैदा कर पाहन में।
---- वी.सी. राय 'नया'
No comments:
Post a Comment