Thursday, 16 August 2012

NAMAN

गणतंत्र दिवस की बधाई के साथ एक ग़ज़ल के माध्यम से प्रस्तुत है :
-------------- स्वदेश नमन ----------------
सिख-हिंदु-मुसलमान-इसाई का कथन है।
ये मेरा वतन, तेरा वतन, सबका वतन है।

इस देश की धरती को मेरा कोटि नमन है।
उड़ने को दिया जिसने ये उन्मुक्त गगन है।

चाहूँ तो मैं आकाश के तारों को भी छू लूँ ,
फैलाए  हुए  पंख  मिरे  साथ  पवन है।

जीवों ने, वनों, नदियों, पहाड़ों ने सजाया,
मानव की सृजन शक्ति ने महकाया चमन है।

खेतों में फसल, मिल में जो उत्पाद बहुत हैं,
खुशहाल हुआ देश तो दुनिया को जलन है।

भाई को लड़ा भाई से 'कुरुक्षेत्र' बना दे ,
दुनिया में सियासत का 'नया' ऐसा चलन है।

ये मेरा वतन, तेरा वतन, सबका वतन है।  
इस देश की धरती को मेरा कोटि नमन है।  
---- वी.सी. राय 'नया'

स्वतंत्रता दिवस की सभी दोस्तों को बधाई के साथ एक ग़ज़ल के माध्यम से प्रस्तुत है भारतमाता की व्यथा

---------- माँ की व्यथा -----------

गीत  मेरे अब  कोई  गाता  नहीं।
सत्य कडुआ है तभी भाता नहीं।
रक्त से क्यों रँग रहे आंचल मेरा,
श्वेत-भगवा-हरित क्यों भाता नहीं?
इतनी दीवारें हैं खिंचती जा रही,
अब तो आँगन ही नज़र आता नहीं।
आग औ तूफ़ान चारो और क्यों?
हाथ किसका है नज़र आता नहीं।
आइना दिल का भी धुंधला हो गया,
अपना चेहरा ही नज़र आता नहीं।
मैंने चौराहे पे रक्खा है दिया,
लैम्प कोई राह दिखलाता नहीं।
अब तो आ जाओ मुजस्सिम सामने,
अब तसव्वुर दिल को बहलाता नहीं।

---- वी.सी. राय 'नया'






























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