Monday, 13 May 2013

Kamal ki Tarah

मित्रों नमस्कार। आज १३ मै को श्री श्री रविशंकर जी के जन्म दिन के अवसर पर  लखनऊ में आर्ट आफ़ लिविंग का ध्यान व सत्संग कार्यक्रम है "तेरा मैं", और ४५ साल पहले आज  ही की तारीख को मेरा व श्रीमती जी का "तेरा मैं - मेरी तू" यानी विवाह हुआ था। इस उपलक्ष में एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ - बताइयेगा कैसी लगी।
---------------- ग़ज़ल -----------------
खिला है चेहरा तेरा आज भी कमल की तरह।
तिरा शबाब नया तू नई ग़ज़ल की तरह।।
सही हैं  राह की कठिनाइयाँ सभी हँस कर,
सजाई कुटिया मेरी प्यार से महल की तरह।
मेरी थी शोख़ नदी जैसी ज़िन्दगी चंचल ,
हुई पवित्र तेरे साथ गंगा जल की तरह।
तुम्हारा प्यार मिला, बेख़बर हुए जग से,
पलक झपकते ही बीते हैं साल पल की तरह।
वो हमसफ़र है 'नया', हमनशीं औ हम साया,
वो असलियत है मेरी और मै असल की तरह।
--- वी. सी. राय 'नया'
 

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