दोस्तों ! पेश है एक ग़ज़ल जो मैं 20-25 साल पहले ग़ुलाम अली की धुन पर गाया करता था => 'सुन लीजिए' - बताइयेगा पढ़ने में कैसी लगी।
----------------- ग़ज़ल ------------------
दास्ताने ग़म सुनाने आ गया, सुन लीजिए।
जान-दिल के साथ और क्या-क्या गया सुन लीजिए।
चैन दिल का छिन गया, आँखों की नींदें उड़ गईं,
एक जीने की तमन्ना पा गया सुन लीजिए।
जो निगाहे नाज़ की क़ातिल ज़दों में आ गया,
उम्र भर बेमौत ही मारा गया, सुन लीजिए।
आ रही है ये सदा पत्थर का सीना चीरकर ,
कितने अरमानों को दफ़नाया गया, सुन लीजिए।
है 'नया' वक़्ते सफ़र, दीदार का हूँ मुन्तज़िर,
लोग कहने लग गए प्यासा, गया सुन लीजिए।
--- वी. सी. राय 'नया'
----------------- ग़ज़ल ------------------
दास्ताने ग़म सुनाने आ गया, सुन लीजिए।
जान-दिल के साथ और क्या-क्या गया सुन लीजिए।
चैन दिल का छिन गया, आँखों की नींदें उड़ गईं,
एक जीने की तमन्ना पा गया सुन लीजिए।
जो निगाहे नाज़ की क़ातिल ज़दों में आ गया,
उम्र भर बेमौत ही मारा गया, सुन लीजिए।
आ रही है ये सदा पत्थर का सीना चीरकर ,
कितने अरमानों को दफ़नाया गया, सुन लीजिए।
है 'नया' वक़्ते सफ़र, दीदार का हूँ मुन्तज़िर,
लोग कहने लग गए प्यासा, गया सुन लीजिए।
--- वी. सी. राय 'नया'
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