FB के मित्रों के लिए सादर प्रस्तुत है छोटी बहर में एक
----------- ग़ज़ल -----------
अँधेरों से मैं आया रोशनी में।
नहाया रूप की जब चाँदनी में।
चमक को होशियारी से बरतना,
छिपा है ज़हर हीरे की कनी में।
तेरा तन धूप में कुम्हला न जाए,
नहाता बस रहे तू चाँदनी में।
मज़ा तेरे ख़यालों में अजब है,
नमक भी ज्यों घुला हो चाशनी में।
'नया' रस्ता ही वो दिखला रहे हैं,
जो रहबर मुब्तला हैं रहजनी में।
---- वी. सी. राय 'नया'
----------- ग़ज़ल -----------
अँधेरों से मैं आया रोशनी में।
नहाया रूप की जब चाँदनी में।
चमक को होशियारी से बरतना,
छिपा है ज़हर हीरे की कनी में।
तेरा तन धूप में कुम्हला न जाए,
नहाता बस रहे तू चाँदनी में।
मज़ा तेरे ख़यालों में अजब है,
नमक भी ज्यों घुला हो चाशनी में।
'नया' रस्ता ही वो दिखला रहे हैं,
जो रहबर मुब्तला हैं रहजनी में।
---- वी. सी. राय 'नया'