Wednesday, 3 October 2012

MANDIR-MANDIR

FB के मित्रो !
कौमी एकता, आपसी सदभाव व भाईचारे को समर्पित एक मतला व कुछ शेर देखिए -
-------------------- ग़ज़ल / गीत ---------------------
मंदिर-मंदिर, मस्जिद-मस्जिद, गिरजे-गिरजे, गुरूद्वारे।
एक ही छवि बसती  है कैसे मज़हब हैं न्यारे-न्यारे।
हर मज़हब बस प्यार सिखाता, उससे, उसकी दुनिया से,
उसको माने चाहे  न  माने, उसको तो सब हैं  प्यारे।
नींद हुई आँखों से ओझल, आन बसे जब सांवरिया,
रत्न जटित सिंघासन उनका, नैन हमारे रतनारे।
भूली बिसरी यादें लेकर, ऋतुएँ आती-जाती हैं,
पावस, शिशिर, बसंत भी भरतीं विरही मन में अंगारे।
टेर रहा मन, हेर रहा तन, फेर रहा मन का मनका,
आ जा रे पिय, आजा रे तू, आजा रे अब आजा रे।
---- वी. सी. राय 'नया'

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