Thursday, 18 October 2012

NAHIN HONE DETE

तरही ग़ज़ल - जिसका मतला व एक शेर बचपन में अपने पिता से मिली नसीहत है -
--------------- ग़ज़ल ---------------
अपनी आवाज़ को ऊँचा नहीं होने देते।
बात की  बात में झगड़ा नहीं होने देते।         ( 'झगड़ा' का कोई अच्छा विकल्प ? )
बात ही बात में हर बात बढ़ी है अक्सर,
बात जो रखते हैं, शिकवा नहीं होने देते।
नाती-पोतों से घिरा बच्चा बना रहता हूँ ,
" मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते " ।

पाँव फैलाऊं मैं जितने वो सिमट जाते हैं,
मेरी चादर को वो छोटा नहीं होने देते।
अपनी हर बात ग़लत हो ये ज़रूरी तो नहीं,
वो  किसी बात पे चर्चा नहीं होने देते।         ( वो सदन में कोई चर्चा नहीं होने देते  )
धर्म कोई भी हो इंसान सभी हैं पहले,
धर्म के नाम पे दंगा नहीं होने देते।
वादा कर लेते हैं फिर साफ़ मुकर जाते हैं,
वो सियासत को तो रुसवा नहीं होने देते।
रुठते और मना  लेते  हैं बारी - बारी ,
'नया' उनको कभी तनहा नहीं होने देते।
---- वी. सी. राय 'नया'

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