25 अक्टूबर को एक तरही मुशायरे में पढ़ी ग़ज़ल आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए पेश है -
------------ तरही ग़ज़ल ------------
सजा के पूछ रहा है जहान कैसा है ?
"ज़मीन कैसी है ये आसमान कैसा है?"
चमन में फूल, सदफ़ में गुहर, फ़लक पे नजूम,
सजे हैं देख मुकम्मल जहान कैसा है।
ज़मीन माँ की तरह, आसमाँ पिता की तरह,
मगर ये फ़ासला इस दरमियान कैसा है ?
नज़र से कर ही लिए उसने प्यार के वादे ,
खुली न फिर भी ज़ुबाँ बेज़ुबान कैसा है ?
किसी के क़त्ल की ख़ातिर बनगा बज्र तेरा ,
अरे दधीच ! तेरा देह दान कैसा है ?
कि मेरे बाद ये ऑंखें किसी की ज्योति बने,
तुम्ही कहो की मेरा नेत्रदान कैसा है ?
ज़मीन ढूँढ रहा था मज़ार के क़ाबिल ,
तो क़ीमतों ने कहा असमान कैसा है ?
मैं होके आया हूँ बीजिंग, वहाँ ये पूछा गया,
जहाँ के मैप में ये ताईवान कैसा है ?
यहाँ तो सब हैं 'नया' दो दिनों के ही मेहमाँ,
भुला दिए हैं जो घर मेज़बान कैसा है ?
--- वी. सी. राय 'नया'
------------ तरही ग़ज़ल ------------
सजा के पूछ रहा है जहान कैसा है ?
"ज़मीन कैसी है ये आसमान कैसा है?"
चमन में फूल, सदफ़ में गुहर, फ़लक पे नजूम,
सजे हैं देख मुकम्मल जहान कैसा है।
ज़मीन माँ की तरह, आसमाँ पिता की तरह,
मगर ये फ़ासला इस दरमियान कैसा है ?
नज़र से कर ही लिए उसने प्यार के वादे ,
खुली न फिर भी ज़ुबाँ बेज़ुबान कैसा है ?
किसी के क़त्ल की ख़ातिर बनगा बज्र तेरा ,
अरे दधीच ! तेरा देह दान कैसा है ?
कि मेरे बाद ये ऑंखें किसी की ज्योति बने,
तुम्ही कहो की मेरा नेत्रदान कैसा है ?
ज़मीन ढूँढ रहा था मज़ार के क़ाबिल ,
तो क़ीमतों ने कहा असमान कैसा है ?
मैं होके आया हूँ बीजिंग, वहाँ ये पूछा गया,
जहाँ के मैप में ये ताईवान कैसा है ?
यहाँ तो सब हैं 'नया' दो दिनों के ही मेहमाँ,
भुला दिए हैं जो घर मेज़बान कैसा है ?
--- वी. सी. राय 'नया'
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