Sunday 17 November 2013

Yaad Hai

1982 में मैंने बहुत ही मशहूर ग़ज़ल की तरह पर दो मतले व कुछ शेर कहे थे, जिनमे हर शेर 'याद है/हैं' से शुरू होता है और 'याद है' रदीफ़ भी है। देखें आपको यह ग़ज़ल कैसी लगती है। 
--------------- ग़ज़ल -------------------
तेरा वो नज़रें चुरा कर मुस्कराना याद है।
"मुझको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है।"
है यकीं मुझको तुझे मेरा फ़साना याद है।
दर्द में डूबा हुआ ग़मगीं तराना याद है।
याद हैं लम्हे हसीं जो तेरी क़ुर्बत के मिले,
औ' बिछड़ते वक्त तेरा रूठ जाना याद है।
याद हैं वो रेशमी खुशबू भरी ज़ुल्फ़ें तेरी,
और इक लट का जबीं पर झूल आना याद है।
याद है आँखों में मस्ती की छलकती सी शराब,
और क़ातिल तीर नज़रों से चलाना याद है।
याद है होठों पे ठहरी झांकती हरदम हँसी,
हर अदा को बेसबब तेरा छिपाना याद है। 
याद है संदल की मूरत सा महकता इक बदन,
बाँह में भरने कि अनबोली तमन्ना याद है। 
याद हैं तलवे महावर से रचे नाज़ुक 'नया',
और उन्ही पावों घरौंदों का मिटाना याद है। 
--- वी. सी. राय 'नया'


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