Tuesday 26 February 2013

Pas bhi Tu

मित्रो ! छोटी बहर में एक ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है।
-------- ग़ज़ल ---------
दूर है तू पर पास भी तू।
जीवन का एहसास भी तू।
तू ही तू है दिल में मिरे,
चलती हुई हर श्वास भी तू।
मेरे लिए दुनिया में तिरी,
आम है तू पर ख़ास भी तू।
आस जगाई जो दिल में,
पूरी कर अब आस भी तू।
दृश्य है तू संगीत भी तू,
ख़ुशबू और मिठास भी तू।
स्पर्श से अपने अब भर दे,
एक 'नया' विश्वास भी तू।
--- वी. सी. राय 'नया'

Thursday 14 February 2013

Gaon me a jayega

दोस्तों! आप सबने 'शेर राजा' वाले शेर को नवाज़ कर 'likes' की सेंचुरी की, तहेदिल से शुक्रिया। लीजिये पेश है पूरी ग़ज़ल। उम्मीद है कि और शेर भी आपको पसंद आयेंगे।
---------------- ग़ज़ल ------------------
शह्र का हर रोग तेरे गाँव में आ जाएगा।
सब्र का दामन जो छोड़ा दाँव में आ जाएगा।

काट कर जंगल बढ़ा ली तुमने बस्ती तो मगर,
शेर राजा है, किसी दिन गाँव में आ जायेगा।
पेड़ बिन सोचे जो काटे, है ये उनकी बद्दुआ,
बाढ़ औ' सूखे के दोहरे दाँव में आ जाएगा।  
बढ़ के बरगद की तरह बाँहों से भी पकड़ो ज़मीं,
धूप - बारिश से परीशाँ छाँव  में आ जाएगा।
हौसला परवाज़ का हो आसमानों सा बुलंद,
आसमाँ खुद झुक के तेरे पाँव में आ जाएगा।
चाशनी कौवे को पीते देख कर आया ख्याल,
उसका मीठापन कभी तो काँव में आ जाएगा।
हुस्न की हर एक अदा ही शायरी है ऐ 'नया',
गीत बन कर कल ग़ज़ल की छाँव में आ जाएगा।
--- वी.सी. राय 'नया'
आज मुंबई में तेंदुए के आतंक के समाचार ने एक पुराना शेर याद दिलाया, जो पहले भी 2-3 बार चरितार्थ हुआ है। आप भी देंखें -    (पूरी ग़ज़ल बाद में पोस्ट करूँगा।
काट कर जंगल बढ़ा ली तुमने बस्ती तो ज़रूर,
शेर राजा है, किसी दिन गाँव में आ जायेगा।
--- वी.सी. राय 'नया'

Tuesday 12 February 2013

Basanti Hawaen

'प्रयास' के प्रथम अंक के लिए प्रस्तुत है एक बसंती ग़ज़ल -
------------- ग़ज़ल --------------
ये पतझर का मौसम, बसंती हवाएँ।
सदा साथ एक दूसरे का निभाएँ।
जो पत्ते सुखाएं, गिराएँ , उड़ाएँ।
हवाएँ वही कोपलें भी खिलाएँ।
गुलों को बरसने का अरमा बहुत है,
ज़रा आप गुलशन में आ मुस्कराएँ।
अंधेरो अभी लो निकलता है सूरज,
कहाँ तक हिमायत करेंगी घटाएँ।
अँधेरा 'नया' इक उजाला बनेगा,
ज़रा आप चेहरे से चिलमन हटाएँ।
--- वी.सी. राय 'नया'

Sunday 3 February 2013

Jan Lijiye

FB के दोस्तो ! पेश है एक ताज़ा ग़ज़ल, जिसका मतला बहुत पहले मज़ाक में कहा था (फ़िल्मी गीत सुनकर)
---------------- ग़ज़ल -----------------
दिल चीज़ क्या है आप मेरा जान लीजिए।
सोना है ये कि ठीकरा , पहचान लीजिए।
सोने के भाव भी जो बिके दिल बाज़ार में,
मिट्टी के मोल ही वो गया मान लीजिए।
मुस्कान उसकी एक मिले गर जहान में,
फ़ौरन लपक के, दे के दिलो जान लीजिए।
जो है दोस्ती अज़ीज़ न हरगिज़ अज़ीज़े मन,
एहसान कीजिए औ' न एहसान लीजिए।
पहचानिए सिफ़त ये तबस्सुम की ऐ 'नया',
मुस्काइये औ' बदले में मुस्कान लीजिए।
--- वी. सी. राय 'नया'