मूर्ख - सम्मलेन
एक
मूरख - मूरख हँसत हैं बिना बात दै ताल ,
चतुर मूर्ख खिसियाय के नोचत आपन बाल.
नोचत आपन बाल देखि बजवावौ ताली,
चतुर मूर्ख बनि ताली का समझत हैं गाली.
कह वी सी कविराय 'नया' देखो ये फ़ैशन,
कुरसी महामूर्ख की तबहू होत इलेक्शन .
दो
मूरख - मूरख लड़त हैं कौन बड़ो औ छोट ,
चतुर मूर्ख ढूँढत फिरें मूरखता में खोट .
मूरखता में खोट कहे मूरख पहचानो ,
महामूर्ख का ताज उसी के सर पर जानो.
कह वी सी कविराय 'नया' देखा ये फ़ैशन,
महामूर्ख कहलाय रहे देखो कितने जन.
तीन
मूरख - मूरख एक होउ सारे भेद बिसार,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब होली में इस बार.
होली में इस बार रंग केसरिया छलके ,
गाओ हमारे साथ फाग सारे जन मिलके.
कह वी सी कविराय 'नया' मौसम यह बोला,
रँग लो आज हमारे साथ बसंती चोला.
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