Friday 18 May 2012

HINDUSTAANI

क़ौमी एकता व सर्वधर्म समभाव को समर्पित रचना -
------------------ हिन्दुस्तानी --------------------
गर्व है हिन्दुस्तानी हैं हम एक ही ईश्वर की संतान।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब मिल कर हैं हिंदुस्तान।

मज़हब सिर्फ मुहब्बत बांटे मिलकर  बैठे जब इंसान।
आपस में हमको बंटवाता अपने दिल का ही शैतान।

गिरजे में बाइबिल पढ़ देखो या फिर मज्जिद में कुरआन।
गुरूद्वारे की गुरबानी में सुन लो सारे वेद पुरान।

आबे ज़म-ज़म और अमृतसर हैं सारे 'होली वाटर',
श्रद्धा की दुबकी में कर लो घर बैठे गंगा स्नान।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में भाई-भाई,
भाई-भाई को लडवाता राजनीति का ही मैदान ।

ईश्वर अल्ला नाम उसी के, उसके पैग़म्बर है राम,
यीशु मसीह,मोहम्मद साहेब,गुरु नानक जैसे इंसान।

छोटा-बड़ा न कोई यहाँ पर, सब के हक हैं एक समान,
सबको रोटी, सबको कारज देता अपना संविधान।

मिलकर बैठो, सुख-दुख बांटो , बाँट के खाओ जो भी मिले,
माँ का आँचल रहे तिरंगा, मत होने दो लहुलुहान।
----- वी. सी. राय 'नया'
    

Wednesday 16 May 2012

Panch-tatva

पञ्च - तत्व 


मुक्तक 
पांच तत्वों से मिल कर बना है मकां। 
खुशबुओं से किसी की सजा है मकां।             
जानता तो ये है अपना कुछ भी नहीं,
फिर भी खुद को ही सब मानता है मकां। .               


उन्ही पांच तत्वों की नज़र - एक ग़ज़ल 




मैं सफ़र-दर-सफ़र दर-सफ़र जाऊंगा।
घूम-फिर लूँ तभी अपने घर जाऊंगा।
धरती माँ  है मेरी, जिसने पाला मुझे ,
गोद में उसकी थक कर पसर जाऊंगा।
बुलबुला एक पानी पे है ज़िन्दगी ,
मैं  यहाँ  से  वहां  तैर  कर जाऊंगा।
दिल जला है बहुत, जिस्म गर जल गया,
अग्नि से मैं गुज़र कर निखर जाऊंगा।
आसमानों के आगे जहां और हैं ,
लेके मैं इश्क के बालो-पर जाऊंगा।
छू  न पाए कोई , दिख न पाए कभी ,
बनके खुशबू  हवा में बिखर जाऊंगा।
जिसको ढूंढें सभी पर न पायें कभी ,
मैं विलय हो उसी में संवर जाऊंगा।

--- वी. सी. राय 'नया'

Saturday 5 May 2012

Ghazal Seekh Jayega

---------------------- ग़ज़ल ---------------------------

जो  करके तुम दिखाओगे वो करना सीख जायेगा। 
नशा कोई करो, बच्चा बिगड़ना सीख जायेगा।

लगाता  दौड़  है  'वाकर' में कोई गोद का बच्चा ,
तो लगता है कि दो ही दिन में चलना सीख जायेगा। 

जो ग़लती कर के खुद माने, अगर उसको नसीहत दो,
वो नेता कि तरह कल से मुकरना सीख जायेगा। 

ये संक्रामक बड़ा है रोग तुम मुस्का के तो देखो ,
जो रोता रहता है वो मुस्कुराना सीख जायेगा। 

करो तारीफ़ उसकी सौ, कमी गर इक 'नया' बोली,
जिसे लड़ना नहीं आता वो लड़ना सीख जायेगा।

वी. सी. राय 'नया'

GHAZAL ---- MUJHE

एक ग़ज़ल मेरी भी

दीखता साकी की आँखों में है मैख्नाना मुझे।
क्या ज़रूरत हाथ में लेने की  पैमाना  मुझे।

मोहतरम वाइज़ ने जब सौंपा है पैमाना मुझे।   
तब ही दुनिया ने बिरादर अपना पहचाना मुझे।

ज़िन्दगी के पेचोखम जुल्फों से तेरी कम नहीं,
मैं उलझता ही गया आया न सुलझाना मुझे।

वो तो मेरा है, कोई शुबहा नहीं, हर हाल में ,
रास आता ही नहीं पर उसका कहलाना मुझे।

कौर तेरा लेके 'चिन्नो' फुर्र से उड़ जाएगी ,      (चिड़िया)
याद आता है वो मा  के हाथ से खाना मुझे।

मेरा 'पोता' पीठ पर चढ़, हांकता है जब मुझे,     (grand child)
कष्ट तन-मन के भुलाता घोडा बन जाना मुझे।

हैं बहुत ही खूबसूरत ख्वाब बचपन के 'नया',
बाद मरने के सही, बचपन में पहुंचाना मुझे।

--- वी. सी. राय 'नया'        

Thursday 3 May 2012

EK GHAZAL "AASMAN MEN"

--------------- ग़ज़ल ---------------

बाँहों में भर लो इसको , उड़ो आसमान में।
अफसाना हौसलों का लिखो आसमान में।

बादल - पखेरू दोस्त मिलेंगे उड़ोगे जब, 
दुश्मन मिसाइलों से बचो आसमान में। 

सूरज से भी छिपा के तुम्हारा भविष्य तक, 
तारों ने खुद लिखा है पढ़ो आसमान में।

मेरा ज़मीर , मेरी अना और मेरी खुदी,
किसकी बुलान्दियां हैं कहो आसमान में। 

हम प्यार औ' अमन से सजाएंगे ये ज़मीं ,
ऐलान अब 'नया' ये करो आसमान में।

--वी. सी. राय 'नया'

Wednesday 2 May 2012

'Zamin Par' Ghazal

------------------ ग़ज़ल -------------------

होते रहे हैं  रद्दोबदल  इस  ज़मींन  पर।   
खंडहर भी बन गए हैं महल इस ज़मींन पर।

परवाज़ पर हो आज, उड़ो   आसमान में ,
आना पड़ेगा लौट के कल इस ज़मींन पर।

मरने के बाद हो कि न हो स्वर्ग और नर्क ,
बोओगे जैसा पाओगे फल इस ज़मींन पर।

इस आज को पकड़ के वसूलो हर-एक पल ,
आएगा ये न लौट के कल   इस ज़मींन पर।    

शीशे सा तेरा दिल है ज़रा साफ़ रख इसे ,
बन जाएगा ये शीशमहल इस ज़मींन पर।

अंजाम इश्क का है जुदाई  यकीन कर ,
बतला रहा है ताजमहल   इस ज़मींन पर।

हमसे कहा गया न 'नया' शेर एक भी ,
आई उतर के खुद ही ग़ज़ल इस ज़मींन पर।
--- वी. सी. राय  'नया'