------------------ ग़ज़ल -------------------
परवाज़ पर हो आज, उड़ो आसमान में ,
आना पड़ेगा लौट के कल इस ज़मींन पर।
मरने के बाद हो कि न हो स्वर्ग और नर्क ,
बोओगे जैसा पाओगे फल इस ज़मींन पर।
इस आज को पकड़ के वसूलो हर-एक पल ,
आएगा ये न लौट के कल इस ज़मींन पर।
शीशे सा तेरा दिल है ज़रा साफ़ रख इसे ,
बन जाएगा ये शीशमहल इस ज़मींन पर।
अंजाम इश्क का है जुदाई यकीन कर ,
बतला रहा है ताजमहल इस ज़मींन पर।
हमसे कहा गया न 'नया' शेर एक भी ,
आई उतर के खुद ही ग़ज़ल इस ज़मींन पर।
--- वी. सी. राय 'नया'
होते रहे हैं रद्दोबदल इस ज़मींन पर।
खंडहर भी बन गए हैं महल इस ज़मींन पर।परवाज़ पर हो आज, उड़ो आसमान में ,
आना पड़ेगा लौट के कल इस ज़मींन पर।
मरने के बाद हो कि न हो स्वर्ग और नर्क ,
बोओगे जैसा पाओगे फल इस ज़मींन पर।
इस आज को पकड़ के वसूलो हर-एक पल ,
आएगा ये न लौट के कल इस ज़मींन पर।
शीशे सा तेरा दिल है ज़रा साफ़ रख इसे ,
बन जाएगा ये शीशमहल इस ज़मींन पर।
अंजाम इश्क का है जुदाई यकीन कर ,
बतला रहा है ताजमहल इस ज़मींन पर।
हमसे कहा गया न 'नया' शेर एक भी ,
आई उतर के खुद ही ग़ज़ल इस ज़मींन पर।
--- वी. सी. राय 'नया'
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