Wednesday, 2 May 2012

'Zamin Par' Ghazal

------------------ ग़ज़ल -------------------

होते रहे हैं  रद्दोबदल  इस  ज़मींन  पर।   
खंडहर भी बन गए हैं महल इस ज़मींन पर।

परवाज़ पर हो आज, उड़ो   आसमान में ,
आना पड़ेगा लौट के कल इस ज़मींन पर।

मरने के बाद हो कि न हो स्वर्ग और नर्क ,
बोओगे जैसा पाओगे फल इस ज़मींन पर।

इस आज को पकड़ के वसूलो हर-एक पल ,
आएगा ये न लौट के कल   इस ज़मींन पर।    

शीशे सा तेरा दिल है ज़रा साफ़ रख इसे ,
बन जाएगा ये शीशमहल इस ज़मींन पर।

अंजाम इश्क का है जुदाई  यकीन कर ,
बतला रहा है ताजमहल   इस ज़मींन पर।

हमसे कहा गया न 'नया' शेर एक भी ,
आई उतर के खुद ही ग़ज़ल इस ज़मींन पर।
--- वी. सी. राय  'नया'       

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