पञ्च - तत्व
मुक्तक
मुक्तक
पांच तत्वों से मिल कर बना है मकां।
खुशबुओं से किसी की सजा है मकां।
जानता तो ये है अपना कुछ भी नहीं,
फिर भी खुद को ही सब मानता है मकां। .
उन्ही पांच तत्वों की नज़र - एक ग़ज़ल
मैं सफ़र-दर-सफ़र दर-सफ़र जाऊंगा।
घूम-फिर लूँ तभी अपने घर जाऊंगा।
धरती माँ है मेरी, जिसने पाला मुझे ,
गोद में उसकी थक कर पसर जाऊंगा।
बुलबुला एक पानी पे है ज़िन्दगी ,
मैं यहाँ से वहां तैर कर जाऊंगा।
दिल जला है बहुत, जिस्म गर जल गया,
अग्नि से मैं गुज़र कर निखर जाऊंगा।
आसमानों के आगे जहां और हैं ,
लेके मैं इश्क के बालो-पर जाऊंगा।
छू न पाए कोई , दिख न पाए कभी ,
बनके खुशबू हवा में बिखर जाऊंगा।
जिसको ढूंढें सभी पर न पायें कभी ,
मैं विलय हो उसी में संवर जाऊंगा।
--- वी. सी. राय 'नया'
उन्ही पांच तत्वों की नज़र - एक ग़ज़ल
मैं सफ़र-दर-सफ़र दर-सफ़र जाऊंगा।
घूम-फिर लूँ तभी अपने घर जाऊंगा।
धरती माँ है मेरी, जिसने पाला मुझे ,
गोद में उसकी थक कर पसर जाऊंगा।
बुलबुला एक पानी पे है ज़िन्दगी ,
मैं यहाँ से वहां तैर कर जाऊंगा।
दिल जला है बहुत, जिस्म गर जल गया,
अग्नि से मैं गुज़र कर निखर जाऊंगा।
आसमानों के आगे जहां और हैं ,
लेके मैं इश्क के बालो-पर जाऊंगा।
छू न पाए कोई , दिख न पाए कभी ,
बनके खुशबू हवा में बिखर जाऊंगा।
जिसको ढूंढें सभी पर न पायें कभी ,
मैं विलय हो उसी में संवर जाऊंगा।
--- वी. सी. राय 'नया'
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