मुस्कराइए कि 'मैं' लखनऊ में हूँ। लेकिन तीन दिन बाद ही फिर गुड़गाँव जाना है और कुछ दिन FB पर चुप रहूँगा। चलते-चलते एक तरही ग़ज़ल आपकी मुस्कराहट की उम्मीद में -
---------- ग़ज़ल ----------
सब हुए फ़ेल भाँप पाने में।
"दर्द कितना है मुस्कराने में"। (--- मोनालीसा)
जितने हथियार है ज़माने में।
काट सबकी है मुस्कराने में।
घर मेरा जल गया तो क्या ग़म है?
हाथ कैसे जले जलाने में।
एक झूठा बयान काफ़ी है,
सच को उसकी सज़ा दिलाने में।
जो लकीरों में क़ैद हो न सके,
याद होगा वो हर ज़माने में।
बाग़बां क्यारियों में हमको दिखा,
देर क्या है बहार आने में।
झुक के वो भी 'नया' कमान हुए,
जो रहे दुनिया को झुकाने में।
---- वी.सी. राय 'नया'
Sab hue fail bhamp pane men.
"Dard kitna hai muskurane men." (--- MONALISA)
Jitne hathiyar hain zamane men.
Kat sabki hai muskarane men.
Ghar mera jal gaya to kya gham hai
Hath kaise jale jalane men.
Ek jhutha bayan kafee hai,
Sach ko uski saza dilane men.
Jo lakeeron men qaid ho na sake,
yad hoga wo har zamane men.
Baghbaan kyariyon men hamko dikha,
Der kya ab bahar ane men.
Jhuk ke wo bhi 'Naya' kamaan hue,
Jo rahe duniya ko jhukane men.
---- V.C. Rai 'Naya'
Tarahi Nashishta No 17 ke liye -
एक ग़ज़ल और देखें ---
लुत्फ़ लेते हैं वो सताने में।
दिल चुराने में, भूल जाने में।
वस्ल के लम्हे बीत जाते हैं,
रूठने और फिर मनाने में।
फ़र्क एक हर्फ़ का, जियो कि मरो,
उनके आने में, उनके जाने में।
रोने-हँसने में अश्क उमड़े हैं,
ये छिपे रहते मुस्कराने में।
दर्द-ओ-ग़म से निज़ात पाओगे,
मुस्कराने में, गुनगुनाने में।
आग बाज़ार में जो घुस बैठी,
शासन लाचार रोक पाने में।
आग तनमन में जो लगी है 'नया',
सावन भी आ जुटा बढ़ाने में।
---- वी.सी. राय 'नया'
Ek ghazal aur dekhen
Lutf lete hain wo sataane men.
Dil churane men, bhul jane men.
Wasl ke lamhe beet jate hai,
Ruthane aur phir manane men.
Farq ek harf ka, jiyo ki maro,
Unke ane men, unke jane men.
Rone-hansane men ashq umade hain,
Ye chhipe rahte muskarane men.
Dard-o-gham se nizat paaoge,
Muskarane men, gungunane men.
Ag bazar men jo ghus baithi,
Shasan lachar rok pane men.
Ag tan-man men jo lagi hai 'Naya',
Sawan bhi aa juta barhane men.
---- V.C. Rai 'Naya'