Tuesday, 31 July 2012

AYA MAUSAM PHOOLON KA

-------- ग़ज़ल --------
आया मौसम फूलों का।
कजरी का औ' झूलों का।

फूलों को जो बींध रहे,
नाम बता उन शूलों का।

मान सदा खुशबू  का है,
कब होता है फूलों  का ?

अपना रिश्ता तो जैसे,
नदिया के दो कूलों का।

याद करूँ मैं तुझको ही,
दंड मिला किन भूलों का ?

साँस नचाती है ढाँचा,
हिलती-डुलती चूलों का।

पौधा कोइ 'नया' रोपो,
नाम अमन हो फूलों का।
--- वी.सी. राय 'नया'

Wednesday, 18 July 2012

PC AND IC

PC=Personal Computer / Priyanka Chopra / P. Chidambaram / Poor Chap
IC = Integrated Circuit / I see / Ice Cream / Intelligent C
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PC AND IC

When I was first introduced to PC,way back in 1986, it was Personal Computer and IC were Integrated  Circuits, important component of PC. Today PC is available in many Avtars - desk top, lap top, palm top, so on and so forth. But you pick up any magazine, you will realize your mistake and agree that PC is really Priyanka Chopra, the famous and gorgeous Bollywood heartthrob.

On the other hand, pick up any newspaper of yesterday, today or tomorrow, or the day before or the day after, you will realize that PC is none other than our beloved HM and former FM - P Chidambaram, sometimes fondly called Chiddu. But IC ? "I see" is not his Taqia  Kalam (Pet phrase). He simply likes Ice Cream like most of us, specially the diabetics like me. The other day PC very rightly observed that the urban middle class buys ice cream for Rs. 20/= and drinking water for Rs. 15/= and complains for Manhgai - Inflation (of prices instead of tyres). Poor PC does not realize that today the health conscious urban population is being forced to buy drinking water like rural population in certain areas in dry season. Few decades back the urban water supply was considered and was quite potable and harmless and there was no need for Bottled Drinking Water. With entry of Bislery and other such brands, the quality of our tap water went down and down and down and down. It is difficult to say - which one is the cause and which is effect. The poor quality of tap water is the cause of wind fall for Bottled Drinking Water industry or this industry is the cause of down fall of tap water quality.

The public out cry is always symbolic. Today the common public has become highly diplomatic if not politic. When there is out cry for Manhgai or inflation - in fact it is for poor governance. When it is for Black Money - it is for poor governance.When it is for Scams like 2G, CWG, Coalgate etc. etc. - it is again for poor governance. I fail to understand - why people want Ram Rajya in India. It is a purely an imaginary concept. But people are most obedient followers of  Rashtra Pita (Father of Nation) Mahatma Gandhi. He wanted Ram Rajya in the country and so it must be - by any means, including by hooks or by crooks, but they must be intelligent. Intelligent Crooks - IC again ? Poor Chap - PC.

V.C. Rai 'Naya'

Tuesday, 17 July 2012

TARAHI GHAZAL Muskarane men

मुस्कराइए कि 'मैं' लखनऊ में हूँ। लेकिन तीन दिन बाद ही फिर गुड़गाँव जाना है और कुछ दिन FB पर चुप रहूँगा। चलते-चलते एक तरही ग़ज़ल आपकी मुस्कराहट की उम्मीद में -
---------- ग़ज़ल ----------
सब हुए फ़ेल भाँप पाने में।
"दर्द कितना है मुस्कराने में"।    (--- मोनालीसा)    
जितने हथियार है ज़माने में।                                 
काट सबकी है मुस्कराने में।                                  
घर मेरा जल गया तो क्या ग़म है?                        
हाथ  कैसे  जले जलाने में।                                    
एक झूठा बयान काफ़ी है,                                      
सच को उसकी सज़ा दिलाने में।                             
जो लकीरों में क़ैद हो न सके,
याद होगा वो हर ज़माने में।
बाग़बां क्यारियों में हमको दिखा,
देर क्या है बहार आने में।
झुक के वो भी 'नया' कमान हुए,
जो रहे दुनिया को झुकाने में।
---- वी.सी. राय 'नया'

Sab hue fail bhamp pane men.
"Dard kitna hai muskurane men."        (--- MONALISA)
Jitne hathiyar hain zamane men.
Kat sabki hai muskarane men.
Ghar mera jal gaya to kya gham hai
Hath kaise jale jalane men.
Ek jhutha bayan kafee hai,
Sach ko uski saza dilane men.
Jo lakeeron men qaid ho na sake,
yad hoga wo har zamane men.
Baghbaan kyariyon men hamko dikha,
Der kya ab bahar ane men.
Jhuk ke wo bhi 'Naya' kamaan hue,
Jo rahe duniya ko jhukane men.
---- V.C. Rai 'Naya'
 

Tarahi Nashishta No 17 ke liye -
एक ग़ज़ल और देखें ---

लुत्फ़ लेते हैं वो सताने में।
दिल चुराने में, भूल जाने में।
वस्ल के लम्हे बीत जाते हैं,
रूठने और फिर मनाने में।
फ़र्क एक हर्फ़ का, जियो कि मरो,
उनके आने में, उनके जाने में।  
रोने-हँसने में अश्क उमड़े हैं,
ये छिपे रहते मुस्कराने में।
दर्द-ओ-ग़म से निज़ात पाओगे,
मुस्कराने में, गुनगुनाने में।
आग बाज़ार  में  जो घुस बैठी,
शासन लाचार रोक पाने  में।
आग तनमन में जो लगी है 'नया',
सावन भी आ जुटा बढ़ाने में।

---- वी.सी. राय 'नया'
Ek ghazal aur dekhen

Lutf lete hain wo sataane men.
Dil churane men, bhul jane men.
Wasl ke lamhe beet jate hai,
Ruthane aur phir manane men.
Farq ek harf ka, jiyo ki maro,
Unke ane men, unke jane men.
Rone-hansane men ashq umade hain,
Ye chhipe rahte muskarane men.
Dard-o-gham se nizat paaoge,
Muskarane men, gungunane men.
Ag bazar men jo ghus baithi,
Shasan lachar rok pane men.
Ag tan-man men jo lagi hai 'Naya',
Sawan bhi aa juta barhane men.

---- V.C. Rai 'Naya'




Rangin

अपनी रंगीन मिज़ाजी के चलते आज मैं रँग की बात करूँगा।

रंग चढ़ते हैं, रँग उतरते हैं।.
रंग प्रतिनिधि हमारे बनते हैं।
लाल, नीले, तिरंगे, केसरिया,
अब सभी रंग रँग बदलते हैं।

विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ इसलिए जानता हूँ कि बेरंग सूर्य किरण में सात रंग होते हैं।

एक ही रंग है हर रंग, मिला कर देखो।
अपनी आँखों से हरएक पर्दा हटा कर देखो।
एक बेरंग किरण दूर फ़लक से जो चली ,
मुख्तलिफ़ रंग बिखेरे है वो आकर देखो।

रंगों की ख़ासियत है कि  -

रंग भर दोगे तो तसवीर बोल उठ्ठेगी।
ख़्वाब रँग जाएँ तो तक़दीर बोल उठ्ठेगी।

सात स्वर हैं, और रंग भी सात  हैं।
रंग लाते हैं बहुत गर साथ हैं।

मेरा तो मानना है कि  -
फूल-काँटे, रात-दिन, नेकी-बदी, रंजो-ख़ुशी,
ज़िन्दगी का कैनवस रंगीन होता है बहुत।
याद मैं करता नहीं हूँ, याद आता है बहुत।
ख़ुद किसी दिन आयेगा, मिलती दिलासा है बहुत।   (उर्दू वाले दोस्त 'मिलती'' को 'मिलता ' पढ़ें)

--- वी.सी. राय 'नया'
   
  

Tanha

------ ग़ज़ल - 'तनहा' -------

चाँद तारों के साथ भी तनहा।
भीड़ में जैसे- आदमी तनहा।

चाँद का हुस्न दागदार ? नहीं,
दिल जलाया है उसने भी तनहा।

तारे गिन-गिन के रात काटी है,
पहलू बदला है हर घड़ी तनहा।

बेखुदी का अजीब आलम है,
गुफ्तगू तुझसे हो रही तनहा।

वो जो बिछड़ा तो सोचता है 'नया',
कैसे बीतेगी ज़िन्दगी तनहा।
--- वी. सी. राय  'नया'
 

Monday, 2 July 2012

Chaar Muktak

पेश हैं चार मुक्तक  :-  

बात  उठती है बात चलती है।
बात बढ़ती है तो बिगड़ती है।
बात मानो न मानो रख लो ज़रा,
बात रखने से बात बनती है।

बात करने के लिए हम होंठों का इस्तेमाल करते हैं -
होंठ हिलते हैं , मुस्कराते हैं।
प्यार की राह पे चलाते हैं।
बोल उठते हैं कड़ुआ सच जो कहीं,
इनपे ताले लगाए जाते हैं।

होंठों पर ताले हों तो आँखों से काम लें -
आँख उठती है , आँख झुकती है।
आँख मिलती है, आँख लड़ती है।
आँखों-आँखों में गुफ़्तगू कर लो ,
आँख ही दिल की बात  करती है।

आपके हाथ ताली  बजाने को बेचैन हैं -
हाथ मिलते हैं, हाथ जुड़ते हैं।
हाथ उठते हैं , हाथ पड़ते हैं।
हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठा ,
हाथ  तक़दीर  तेरी  गढ़ते हैं।

--- वी. सी. राय  'नया'