------ ग़ज़ल - 'तनहा' -------
चाँद तारों के साथ भी तनहा।
भीड़ में जैसे- आदमी तनहा।
चाँद का हुस्न दागदार ? नहीं,
दिल जलाया है उसने भी तनहा।
तारे गिन-गिन के रात काटी है,
पहलू बदला है हर घड़ी तनहा।
बेखुदी का अजीब आलम है,
गुफ्तगू तुझसे हो रही तनहा।
वो जो बिछड़ा तो सोचता है 'नया',
कैसे बीतेगी ज़िन्दगी तनहा।
--- वी. सी. राय 'नया'
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