पेश हैं चार मुक्तक :-
बात उठती है बात चलती है।
बात बढ़ती है तो बिगड़ती है।
बात मानो न मानो रख लो ज़रा,
बात रखने से बात बनती है।
बात करने के लिए हम होंठों का इस्तेमाल करते हैं -
होंठ हिलते हैं , मुस्कराते हैं।
प्यार की राह पे चलाते हैं।
बोल उठते हैं कड़ुआ सच जो कहीं,
इनपे ताले लगाए जाते हैं।
होंठों पर ताले हों तो आँखों से काम लें -
आँख उठती है , आँख झुकती है।
आँख मिलती है, आँख लड़ती है।
आँखों-आँखों में गुफ़्तगू कर लो ,
आँख ही दिल की बात करती है।
आपके हाथ ताली बजाने को बेचैन हैं -
हाथ मिलते हैं, हाथ जुड़ते हैं।
हाथ उठते हैं , हाथ पड़ते हैं।
हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठा ,
हाथ तक़दीर तेरी गढ़ते हैं।
--- वी. सी. राय 'नया'
बात उठती है बात चलती है।
बात बढ़ती है तो बिगड़ती है।
बात मानो न मानो रख लो ज़रा,
बात रखने से बात बनती है।
बात करने के लिए हम होंठों का इस्तेमाल करते हैं -
होंठ हिलते हैं , मुस्कराते हैं।
प्यार की राह पे चलाते हैं।
बोल उठते हैं कड़ुआ सच जो कहीं,
इनपे ताले लगाए जाते हैं।
होंठों पर ताले हों तो आँखों से काम लें -
आँख उठती है , आँख झुकती है।
आँख मिलती है, आँख लड़ती है।
आँखों-आँखों में गुफ़्तगू कर लो ,
आँख ही दिल की बात करती है।
आपके हाथ ताली बजाने को बेचैन हैं -
हाथ मिलते हैं, हाथ जुड़ते हैं।
हाथ उठते हैं , हाथ पड़ते हैं।
हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठा ,
हाथ तक़दीर तेरी गढ़ते हैं।
--- वी. सी. राय 'नया'
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