Tuesday, 20 November 2012

ANKHEN

FB के मित्रो ! अपनी नज़रोँ  की नज्र एक ग़ज़ल पर नज़र डालिए -
------------ ग़ज़ल -----------
दिल में मूरत सी गढ़ गईं आँखें।
आपकी मुझपे पड़ गईं आँखें।

अक्स जो ज़ेह्न में था धुँधला सा,
दो नगीनों सी जड़ गईं आँखें।

मैंने देखी निगाह ज्यों तेरी,
झट ज़मीं में ये गड़ गईं आँखें।

आज तो दिन हसीन गुज़रेगा,
सुब्ह जो तुम से लड़ गईं आँखें।

आग भड़की जो इनके लड़ने से,
ख़ुद बुझाने को अड़ गयीं आँखें।

मेरे दिल के हसीन ख्वाबों को,
इक कहानी सा पढ़ गईं आँखें।

वक़्त आख़िर है, वो हैं सिरहाने,
ये 'नया' मान चढ़ गईं आँखें।
--- वी. सी. राय 'नया'

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