Monday, 5 November 2012

DAULAT MANGE

FB के मित्रो ! एकदम ताज़ा ग़ज़ल प्रस्तुत है। कृपया अपनी राय दें।
---------------- ग़ज़ल ---------------
देता रहता हैं बिना कोई भी क़ीमत माँगे।
क्यों ये नाचीज़ ज़माने से नसीहत माँगे।
पूरी हो जाती है दुनिया में ज़रूरत माँगे।
पर नहीं मिलती ज़माने में मुहब्बत माँगे।
कोई दौलत, कोई शोहरत, कोई सीरत माँगे।
दिल मगर मेरा दुआओं में मुहब्बत माँगे।
सोचता हूँ कि मैं दुनिया में मुहब्बत बाटूँ ,
मिलती चोरी से न जबरन न ये दौलत माँगे।
वक़्त के साथ बदलना ही पड़ा है सबको,
"आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे।"
जानता ख़ूब है ख़त आज भी आएगा नहीं, 
फिर भी दिल है कि दुआओं में तेरा ख़त माँगे।
खौफ़ होता  है जुदाई का 'नया'  नाम न लो,
वक्ते रुख्सत भी कोई मुझसे न रुख्सत माँगे।
----  वी. सी. राय 'नया'  

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