Wednesday, 28 November 2012

Bolta hi Nahin

FB के मित्रो ! एक तरही ग़ज़ल सादर प्रस्तुत है। तरह मिसरा था मेरे उस्ताद, मोहतरम कृष्ण बिहारी 'नूर' साहब का मशहूर "आइना झूट बोलता ही नहीं "। Pl scrawl dawn for ROMAN version.
------------ ग़ज़ल ------------
वो ज़ुबाँ अपनी खोलता ही नहीं।
ये नहीं है कि  बोलता ही नहीं।
हर अदा उसकी कुछ तो है कहती,
तू मगर आँख खोलता ही नहीं।
जितना तुम दोगे उतना पाओगे,
कम ज़ियादा वो तोलता ही नहीं।
वो चमन की बहार क्या जाने,
जो दरीचों  को खोलता ही नहीं।
बंद आँखें तराज़ू हाथ में है,
वो मगर कुछ भी तोलता ही नहीं।
जब युधिष्ठिर भी सच पे टिक न सके,
आइना सच से डोलता ही नहीं।
क्यों न हो कड़वी तेरी बात 'नया',
झूठ तू इसमें घोलता ही नहीं।
--- वी. सी. राय 'नया'

Wo Zuba'n apni kholta hi nahi.
Ye nahi hai ki bolta hi nahi.
Har ada uski kuchh to hai kahti,
Tu magar ankh kholta hi nahi.
Jitna tum doge utna paoge,
Kam ziyada wo tolta hi nahi.
Wo chaman ki bahar kya jane,
Jo darichon ko kholta hi nahi.
Band ankhen tarazu hath me hai,
Wo magar kuchh bhi tolta hi nahi.
Jab Yudhishthir bhi sach pe tik n sake,
Aina sach se dolta hi nahi.
Kyon n kadvi ho teri bat 'Naya',
Jhut tu isme gholta hi nahi.
--- V.C. Rai 'Naya'

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