Wednesday 19 December 2012

KHANJAR

FB के मित्रो! एक रिवायती मुसलसल तरजीह बंद ग़ज़ल ख़िदमत में पेश है - 
----------- तरजीह बंद ग़ज़ल -----------
बन गया मेरे लिए जान से प्यारा ख़ंजर।
हुस्न की आँख ने सीने में उतरा ख़ंजर।
जाऊं सदके तेरी आँखों के इधर आ ऐ हसीं,
मेरी आँखों को दिए ख्वाब सितारों से हसीं,
तेरी हर शोख नज़र का है इशारा ख़ंजर।
मैंने उसको तो ख़यालों में जकड़ क़ैद किया,
और उसके लबो रुखसार को भी दाग़ दिया,
पर वो आँखों में छुपाए था दुधारा ख़ंजर।
किससे फ़रियाद करूँ जाके ये मालूम नहीं,
बिस्मिले इश्क़ को मिलता है भला चैन कहीं,
अपनी आँखों का बना रक्खा है तारा ख़ंजर।
दिल में बस के भी मेरे कैसे मुझे भूल गया,
मुझको हालात पे मेरे ही सदा छोड़ दिया,
हर घड़ी दिल ने मेरे तुझको पुकारा ख़ंजर।
आस्तीनों में लिए बैठे हैं राहों में रक़ीब ,
आज देखेंगे 'नया' को ज़रा आए तो क़रीब,
कर रहा दूर से छुप कर ये नज़ारा ख़ंजर।
--- वी. सी. राय 'नया'

Sona-Chandi

सोने का भाव पिछले 40-45 सालों में 10 gm के 100/= से बढ़ कर 2010 में 15000/= तथा 2012 में 32000/= हो गया। इसको ध्यान में रख कर एक शेर देखिये -
     क्या कशमकश है ज़िन्दगी, सोना हुआ मुहाल,
        चाँदी का ताज वक़्त ने बेशक पहना दिया।
--- वी. सी. राय 'नया'

Tuesday 18 December 2012

Zarurat

ज़रूरत
कुछ धार्मिक स्थानों, स्कूलों व अस्पतालों में अक्सर लिखा मिलता है -
" बोझ से दबे हुए, थके-माँदे लोगो! मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। "
मेरा आह्वान - "विश्राम करते हुए तथा ज़िन्दगी की कठिनाइयों से जूझते हुए लोगो! सभी मेरे साथ गाओ -
ज़िन्दगी कितनी खुबसूरत है।
बस इसी सोच की ज़रूरत है।
--- वी. सी. राय 'नया'

Monday 17 December 2012

PATTHAR

FB के दोस्तों ! एक ग़ज़ल आपके लिए पेश है, जिसकी रदीफ़ काफ़ी सख्त है - एकदम पत्थर -
---------------- ग़ज़ल ----------------
ये बता कैसे तेरे हाथ में आया पत्थर।
किसने दिल को तेरे शीशे से बनाया पत्थर।
हमने किस्मत पे ज़ियादा ही भरोसा करके,
अपने हाथों से ही किस्मत पे गिराया पत्थर।
मंजिले इश्क़ को आसान बनाने के लिए,
नाम का तेरे हर इक दर पे लगाया पत्थर।
काल के हाथों में औलाद को अपनी छोड़ा,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
आस्था रख के जो देखो तो दिखेगी सूरत,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
टूटता बाँध हो, पुल हो कि इमारत कोई,
पूंछता नीँव  में था कैसा लगाया पत्थर।
चाँदनी रात, समंदर व ग़ज़ल की बातें,
फिर भी सीने पे 'नया' हमने जमाया पत्थर।
--- वी. सी. राय 'नया'
 

Wednesday 12 December 2012

Jo Beet gayee so baat gayee

Aaj Tak TV News on Dec.10, 2012 repeatedly showed Mrs. Jaya Bachchan saying "जो बीत गई सो बात गई".from a famous poem of Original Bahchan Ji. Here is my EKDAM TAZA GHAZAL on this TARAH -
--------- ग़ज़ल ----------
"जो बीत गई सो बात गई"।              
लो सूरज निकला, रात गई।
मेहनत करने की आई घड़ी,
मौसम बदला बरसात गई।
जाने वाली रुत देकर ही,
कुछ यादों की सौग़ात गई।
अपनी तो मुहब्बत की बाज़ी,
पग-पग पर खाती मात गई।
जिस मौत का जीवन पल भी नहीं,
जीवन को देती मात गई।
निर्वाचन में सबकी पूजा,
फिर तो सबकी औक़ात गई।
हर दिन है 'नया', उम्मीद नई,
बंधवा कर ही हर रात गई।
--- वी. सी. राय 'नया'

Monday 10 December 2012

Mohabbat hai hame

Dec.8,2012, महफ़िले सुकून के  "मुहब्बत है हमें" कार्यक्रम के लिए कही ताज़ा ग़ज़ल सादर पेश है -
----------------- ग़ज़ल ------------------
यूँ तो इस देश की हर शै से मुहब्बत है हमें।
आज दौलत की सियासत से ही नफ़रत है हमें।
जब 'मनी' 'ब्लैक' हुआ 'ब्लैक' ही वो मेल करे,
अब सियासत में भी दिखती ये महारत है हमें।
ज़िन्दगी अपनी किराए का मकाँ है यारो,
अपना भी कोई मकाँ हो बड़ी हसरत है हमें।
'फ़ेसबुक' पर भी ग़ज़ल पोस्ट जो हो जाने लगी,
अब विदेशों में भी मिलने लगी शोहरत है हमें।
राज़ की बात 'नया' बज़्म में कैसे कह दें,
आप कैसे भी समझ लें कि मुहब्बत है हमें।
--- वी. सी. राय 'नया'
Yun to is desh ki har shai se mohabbat hai hame.
Aj daulat ki siyasat se hi nafrat hai hame.
Jab 'mani' 'black' hua, 'black' hi wo mel kare,
Ab siyasat me bhi dikhti ye maharat hai hame.
Zindagi apni kiraaye ka makan hai yaro,
Apna bhi koi makan ho badi hasrat hai hame.
'FaceBook' par bhi ghazal post jo ho jane lagi,
Ab videshon me bhi milne lagi shohrat hai hame.
Raz ki bat 'Naya' bazm me kaise kah den,
Ap kaise bhi samajh len ki muhabbat hai hame.
--- V. C. Rai 'Naya'
 

Monday 3 December 2012

NAIN BARSE

एकदम ताज़ा ग़ज़ल आपके सुझावों के लिए हाज़िर है। PL. SCRAWL DOWN for ROMAN.
------------ ग़ज़ल ------------
कभी नैन तरसे, कभी नैन बरसे।
मुहब्बत छुपाते ज़माने के डर से।
घटा ज़ुल्फ़, बिजली गिराती सी आँखें,
उन्हीं में  उलझ के  मिरे नैन बरसे।
वहाँ जो भी जाए, यकीं रख के जाए,
न लौटेगा ख़ाली कभी उसके दर से।
ज़मीं पर ही दोनों हैं जन्नत-जहन्नुम,
ये मानो, या सुन लो इधर से उधर से।
तुही ख़ैर रक्खे तभी रह सकेगी,
बुजुर्गों का साया उठा मेरे सर से।
बुज़ुर्गी के अब तो बड़े फ़ायदे हैं,
मिले छूट रेलों में औ' आयकर से।
'नया' तैरना अब सिखा देगा तुझको,
ये पानी जो ऊँचा हुआ अपने सर से।
--- वी. सी. राय 'नया'
Kabhi nain tarse, kabhi nain barse.
Muhabbat chipate zamane ke dar se.
Ghata zulf, bijli girati si aankhen,
Unhi me ulajh ke mere nain barse.
Vahan jo bhi jaye, yaqin rakh ke jaye,
N lautega khali kabhi uske dar se.
Zamin par hi dono hain jannat-jahannum,
Ye mano ya sun lo idhar se udhar se.
Tuhi khair rakkhe tabhi rah sakegi,
Buzurgon ka saya utha mere sar se.
Buzurgi ke ab to bade fayde hain,
Mile chhoot relon me aur aykar se.
'Naya' tairna ab sikha dega tujhko,
Ye pani jo uncha hua apne sar se.
--- V. C. Rai 'Naya'