FB के दोस्तों ! एक ग़ज़ल आपके लिए पेश है, जिसकी रदीफ़ काफ़ी सख्त है - एकदम पत्थर -
---------------- ग़ज़ल ----------------
ये बता कैसे तेरे हाथ में आया पत्थर।
किसने दिल को तेरे शीशे से बनाया पत्थर।
हमने किस्मत पे ज़ियादा ही भरोसा करके,
अपने हाथों से ही किस्मत पे गिराया पत्थर।
मंजिले इश्क़ को आसान बनाने के लिए,
नाम का तेरे हर इक दर पे लगाया पत्थर।
काल के हाथों में औलाद को अपनी छोड़ा,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
आस्था रख के जो देखो तो दिखेगी सूरत,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
टूटता बाँध हो, पुल हो कि इमारत कोई,
पूंछता नीँव में था कैसा लगाया पत्थर।
चाँदनी रात, समंदर व ग़ज़ल की बातें,
फिर भी सीने पे 'नया' हमने जमाया पत्थर।
--- वी. सी. राय 'नया'
---------------- ग़ज़ल ----------------
ये बता कैसे तेरे हाथ में आया पत्थर।
किसने दिल को तेरे शीशे से बनाया पत्थर।
हमने किस्मत पे ज़ियादा ही भरोसा करके,
अपने हाथों से ही किस्मत पे गिराया पत्थर।
मंजिले इश्क़ को आसान बनाने के लिए,
नाम का तेरे हर इक दर पे लगाया पत्थर।
काल के हाथों में औलाद को अपनी छोड़ा,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
आस्था रख के जो देखो तो दिखेगी सूरत,
तब ही सदियों से है भगवान कहाया पत्थर।
टूटता बाँध हो, पुल हो कि इमारत कोई,
पूंछता नीँव में था कैसा लगाया पत्थर।
चाँदनी रात, समंदर व ग़ज़ल की बातें,
फिर भी सीने पे 'नया' हमने जमाया पत्थर।
--- वी. सी. राय 'नया'
No comments:
Post a Comment