Monday, 28 January 2013

Matla

FB के दोस्तों ! इस ग़ज़ल के मतले में उर्दू के अनुसार 'मतला' व 'निकला' शायद हमक़फ़िया न हों, पर हिन्दी में तो ऐसे ही लिखते हैं, अतः मै छूट ले रहा हूँ। आपकी समीक्षा के लिए सादर पेश है -
--------------- ग़ज़ल -----------------
यों सरे शाम ग़ज़ल छेड़ के बैठी मतला।
सुब्ह मक़्ते पे हुई गीत बना दिन निकला।
एक-एक शेर पे दी दाद ग़ज़ल ने मुझको,
ऐसे माहौल में हर शेर ग़ज़ब का निकला।
आज माहौल की गर्मी औ' दबावों से न डर,
हीरा बनता है ज़मीं में ही तो दब कर कोयला।
आँसुओं में भी तो होती है बला की गर्मी,
दिल अगर दिल है तो आँसू से हमेशा पिघला।
हुस्न के हाथ में देखी जो कमाँ शोख़ी की,
तीर खाने को मेरा फिर से 'नया' दिल मचला।
--- वी. सी. राय 'नया'


Sunday, 20 January 2013

Dhuan

FB के मित्रो ! सादर पेश है आज के हालात की एक
------------------ ग़ज़ल ---------------------
धुआँ-धुआँ-धुआँ-धुआँ, है हर तरफ  धुआँ-धुआँ।
भटक रहा है हर बशर, मैं ही एक नहीं यहाँ।
एक आग है दबी-दबी, झुलस रही है ज़िन्दगी,
सुलग रहा है आसमाँ, सुना रहा है दास्ताँ।
धुएँ की एक दीवार है, ये रहबरी कमाल है,
न राह सूझती कोई, कि काफ़िला चला कहाँ।
कि चिमनियों से हैं कहीं, कि गाड़ियों से हैं कहीं,
कि सिगरेटों से हैं कहीं, ये जिस्म हो रहे धुआँ।
ये नीव थी चट्टान की, जो रेत के मकान की,
ये आँधियों में उड़ चला, तो नीव ही बची निशाँ।
वो अधजली चिताओं से भी चुन के लाए लकड़ियाँ,
कि चूल्हा घर में तब जले, ये मुफ़लिसी का इम्तिहाँ।
ये शोला-ए अज़ाब है, सिसक रहा है जो 'नया',
हवाएँ दो भड़क उठे, न फिर रहे कहीं धुंआ।
--- वी. सी. राय 'नया'

Monday, 14 January 2013

Jalakar Dekhen

FB के दोस्तों को लोहड़ी, मकर संक्रांति व पोंगल की बधाई के साथ पेश है आपसी सौहार्द की एक -
---------------- ग़ज़ल -----------------
दिल के सोए हुए जज़्बात जगा कर देखें।
एक दिया घर में पड़ोसी के जला कर देखें।
उनसे कह दो कि मेरा घर भी जल कर देखें।
हम भी ज़ख्मों को ज़रा आंच दिखा कर देखें।
माना मंजिल है अलग, राह जुदा है अपनी,
आओ दो चार क़दम साथ बढ़ा  कर देखें।
आस्तीनों में लिए फिरते हैं खंजर जो सदा,
आज हम उनको भी सीने से लगा कर देखें।
(आज सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो रहे हैं। मेरा भी मन आज के हालत से इस शेर को बदलने का हो रहा है)
आस्तीनों में लिए फिरते हैं खंजर जो सदा,
हम कहाँ तक उन्हें सीने से लगा कर देखें।
आज मंज़र ये 'नया' बज़्म में सबने देखा,
परदे वाले भी मुझे आँख बचा   कर देखें। 
--- वी. सी. राय 'नया' 

Wednesday, 9 January 2013

Sada de gaya

दोस्तों! एक ग़ज़ल खिदमत में पेश है। 
------------ ग़ज़ल -------------
पास आ के कोई इक सदा दे गया।
दिल के शोलों को मेरे हवा दे गया।
रात  भर तन जलाए फिरा दश्त में,
मेरी मंजिल का जुगनू पता दे गया।
जान  दे कर मुझे मिल गई ज़िन्दगी,
वो वफ़ाओं का मेरी सिला  दे गया।
ग़म नहीं ख़ून करता है गर कुछ दग़ा,
जब पसीना ही अपना दग़ा दे गया।
वक़्त की क़ैद में ज़िन्दगी है 'नया',
कौन है जो इसे ये सज़ा दे गया।
--- वी. सी. राय 'नया'

Saturday, 5 January 2013

Dhup-Chanv

मित्रो ! गुडगाँव में Min. 0.7 Deg C से जूझते हुए और 24 घंटों में मात्र 3 घंटे, 12 से 3, धूप और छाँव की आँख-मिचौली देखते हुए एक पुरानी ग़ज़ल याद आई, जिसमे 4 मतले व 4 शेर हैं। देखिए शायद अच्छी लगे।

अभी नज़र में आया की आज अभिव्यक्ति में एक भी ग़ज़ल पोस्ट नहीं हुई है। लीजिये एक  धूप-छाँही -
------------- ग़ज़ल --------------
जीवन है धूप कभी और कभी छाँव।
कोयल की कूक कभी कौवे की काँव।

बहुरे दिन पत्थर के पीपल की छाँव।
आज उसे देव बना पूज रहा गाँव।

पथरीली राहें हैं ज़ख़्मी हैं पाँव।
चलना है नियति तेरी दूर तेरा गाँव।

रोटी की आस लिए घर से चला गाँव।
छत के लिए शह्र उधर ढूँढ रहा ठाँव।

जीवन भटकाव बना मृगतृष्णा चैन,
छोड़ तेरे आँचल की सुखदाई छाँव।

बदला कुछ ऐसा है जीवन का मोल,
जीवन अनमोल चढ़े अनचाहे दाँव।

बाँहों पे रेंग रहे ज़हरीले नाग,
डसने को व्याकुल हो खोज रहे दांव।

साजन के आवन का पक्का संकेत,
भिनसारे अँगना में कागा की काँव।
--- वी. सी. राय 'नया'

Wednesday, 2 January 2013

New Year 2013

आया नया साल सन तेरा।
बारा का उट्ठा डम्बर-डेरा।
जंतर-मंतर पर कैंडिल ने,
आज व्यवस्था को है घेरा।
नववर्ष में समुचित सुरक्षा, स्वास्थ, समृद्धि एवं संतुष्टि की शुभकामनाएँ।
--- वी. सी. राय 'नया'

वैसे -
नया साल तो 'नया' का है, New Year is mine.
सबकी ओर से करूँ प्रार्थना, God! Let's have Sun shine.
In the heart of every person, things should brighten-up,
चाहे सन हो, या संवत हो, या शकाब्द - रहे FINE.
--- V.C. Rai 'Naya'