Saturday, 5 January 2013

Dhup-Chanv

मित्रो ! गुडगाँव में Min. 0.7 Deg C से जूझते हुए और 24 घंटों में मात्र 3 घंटे, 12 से 3, धूप और छाँव की आँख-मिचौली देखते हुए एक पुरानी ग़ज़ल याद आई, जिसमे 4 मतले व 4 शेर हैं। देखिए शायद अच्छी लगे।

अभी नज़र में आया की आज अभिव्यक्ति में एक भी ग़ज़ल पोस्ट नहीं हुई है। लीजिये एक  धूप-छाँही -
------------- ग़ज़ल --------------
जीवन है धूप कभी और कभी छाँव।
कोयल की कूक कभी कौवे की काँव।

बहुरे दिन पत्थर के पीपल की छाँव।
आज उसे देव बना पूज रहा गाँव।

पथरीली राहें हैं ज़ख़्मी हैं पाँव।
चलना है नियति तेरी दूर तेरा गाँव।

रोटी की आस लिए घर से चला गाँव।
छत के लिए शह्र उधर ढूँढ रहा ठाँव।

जीवन भटकाव बना मृगतृष्णा चैन,
छोड़ तेरे आँचल की सुखदाई छाँव।

बदला कुछ ऐसा है जीवन का मोल,
जीवन अनमोल चढ़े अनचाहे दाँव।

बाँहों पे रेंग रहे ज़हरीले नाग,
डसने को व्याकुल हो खोज रहे दांव।

साजन के आवन का पक्का संकेत,
भिनसारे अँगना में कागा की काँव।
--- वी. सी. राय 'नया'

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