दोस्तों! एक ग़ज़ल खिदमत में पेश है।
------------ ग़ज़ल -------------
पास आ के कोई इक सदा दे गया।
दिल के शोलों को मेरे हवा दे गया।
रात भर तन जलाए फिरा दश्त में,
मेरी मंजिल का जुगनू पता दे गया।
जान दे कर मुझे मिल गई ज़िन्दगी,
वो वफ़ाओं का मेरी सिला दे गया।
ग़म नहीं ख़ून करता है गर कुछ दग़ा,
जब पसीना ही अपना दग़ा दे गया।
वक़्त की क़ैद में ज़िन्दगी है 'नया',
कौन है जो इसे ये सज़ा दे गया।
--- वी. सी. राय 'नया'
------------ ग़ज़ल -------------
पास आ के कोई इक सदा दे गया।
दिल के शोलों को मेरे हवा दे गया।
रात भर तन जलाए फिरा दश्त में,
मेरी मंजिल का जुगनू पता दे गया।
जान दे कर मुझे मिल गई ज़िन्दगी,
वो वफ़ाओं का मेरी सिला दे गया।
ग़म नहीं ख़ून करता है गर कुछ दग़ा,
जब पसीना ही अपना दग़ा दे गया।
वक़्त की क़ैद में ज़िन्दगी है 'नया',
कौन है जो इसे ये सज़ा दे गया।
--- वी. सी. राय 'नया'
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