Monday, 14 January 2013

Jalakar Dekhen

FB के दोस्तों को लोहड़ी, मकर संक्रांति व पोंगल की बधाई के साथ पेश है आपसी सौहार्द की एक -
---------------- ग़ज़ल -----------------
दिल के सोए हुए जज़्बात जगा कर देखें।
एक दिया घर में पड़ोसी के जला कर देखें।
उनसे कह दो कि मेरा घर भी जल कर देखें।
हम भी ज़ख्मों को ज़रा आंच दिखा कर देखें।
माना मंजिल है अलग, राह जुदा है अपनी,
आओ दो चार क़दम साथ बढ़ा  कर देखें।
आस्तीनों में लिए फिरते हैं खंजर जो सदा,
आज हम उनको भी सीने से लगा कर देखें।
(आज सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो रहे हैं। मेरा भी मन आज के हालत से इस शेर को बदलने का हो रहा है)
आस्तीनों में लिए फिरते हैं खंजर जो सदा,
हम कहाँ तक उन्हें सीने से लगा कर देखें।
आज मंज़र ये 'नया' बज़्म में सबने देखा,
परदे वाले भी मुझे आँख बचा   कर देखें। 
--- वी. सी. राय 'नया' 

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