Tuesday, 20 November 2012

ANKHEN

FB के मित्रो ! अपनी नज़रोँ  की नज्र एक ग़ज़ल पर नज़र डालिए -
------------ ग़ज़ल -----------
दिल में मूरत सी गढ़ गईं आँखें।
आपकी मुझपे पड़ गईं आँखें।

अक्स जो ज़ेह्न में था धुँधला सा,
दो नगीनों सी जड़ गईं आँखें।

मैंने देखी निगाह ज्यों तेरी,
झट ज़मीं में ये गड़ गईं आँखें।

आज तो दिन हसीन गुज़रेगा,
सुब्ह जो तुम से लड़ गईं आँखें।

आग भड़की जो इनके लड़ने से,
ख़ुद बुझाने को अड़ गयीं आँखें।

मेरे दिल के हसीन ख्वाबों को,
इक कहानी सा पढ़ गईं आँखें।

वक़्त आख़िर है, वो हैं सिरहाने,
ये 'नया' मान चढ़ गईं आँखें।
--- वी. सी. राय 'नया'

Tuesday, 6 November 2012

DIWALI

FB के सभी मित्रों को दीवाली की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है एक छोटी कविता -
------------------ दीवाली --------------------
वार्ड-रोब से शर्ट निकाली , देख के पत्नी ये बोलीं,
मुझको तो कुछ याद नहीं है ये किसकी दी वाली है।
अपना देना याद नहीं कुछ, मिलना सारा याद मुझे,
पैन्ट - शर्ट दोनों ह़ी अपने मुन्ना की दी वाली है।
तुम जो साड़ी बढ़िया पहने घर में भी हो सजी-धजी,
याद करो पिछली दीवाली , बिट्टी की दी वाली है।
जिस घर में देकर सब भूलें, मिलना हरदम याद रहे,
उस घर में खुश-हाली हरदम, सदा रहे दीवाली है।
---- वी . सी . राय 'नया'

Monday, 5 November 2012

DAULAT MANGE

FB के मित्रो ! एकदम ताज़ा ग़ज़ल प्रस्तुत है। कृपया अपनी राय दें।
---------------- ग़ज़ल ---------------
देता रहता हैं बिना कोई भी क़ीमत माँगे।
क्यों ये नाचीज़ ज़माने से नसीहत माँगे।
पूरी हो जाती है दुनिया में ज़रूरत माँगे।
पर नहीं मिलती ज़माने में मुहब्बत माँगे।
कोई दौलत, कोई शोहरत, कोई सीरत माँगे।
दिल मगर मेरा दुआओं में मुहब्बत माँगे।
सोचता हूँ कि मैं दुनिया में मुहब्बत बाटूँ ,
मिलती चोरी से न जबरन न ये दौलत माँगे।
वक़्त के साथ बदलना ही पड़ा है सबको,
"आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे।"
जानता ख़ूब है ख़त आज भी आएगा नहीं, 
फिर भी दिल है कि दुआओं में तेरा ख़त माँगे।
खौफ़ होता  है जुदाई का 'नया'  नाम न लो,
वक्ते रुख्सत भी कोई मुझसे न रुख्सत माँगे।
----  वी. सी. राय 'नया'  

Thursday, 18 October 2012

ROSHNI MEN

FB के मित्रों  के लिए सादर प्रस्तुत है छोटी बहर में एक
----------- ग़ज़ल -----------
अँधेरों  से  मैं आया रोशनी में।
नहाया रूप की जब चाँदनी में।

चमक को होशियारी से बरतना,
छिपा है ज़हर हीरे की कनी में।

तेरा तन धूप में कुम्हला न जाए,
नहाता बस रहे तू चाँदनी में।

मज़ा तेरे ख़यालों में अजब है,
नमक भी ज्यों घुला हो चाशनी में।

'नया' रस्ता ही वो दिखला रहे हैं,
जो रहबर मुब्तला हैं रहजनी में।
---- वी. सी. राय 'नया'

NAHIN HONE DETE

तरही ग़ज़ल - जिसका मतला व एक शेर बचपन में अपने पिता से मिली नसीहत है -
--------------- ग़ज़ल ---------------
अपनी आवाज़ को ऊँचा नहीं होने देते।
बात की  बात में झगड़ा नहीं होने देते।         ( 'झगड़ा' का कोई अच्छा विकल्प ? )
बात ही बात में हर बात बढ़ी है अक्सर,
बात जो रखते हैं, शिकवा नहीं होने देते।
नाती-पोतों से घिरा बच्चा बना रहता हूँ ,
" मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते " ।

पाँव फैलाऊं मैं जितने वो सिमट जाते हैं,
मेरी चादर को वो छोटा नहीं होने देते।
अपनी हर बात ग़लत हो ये ज़रूरी तो नहीं,
वो  किसी बात पे चर्चा नहीं होने देते।         ( वो सदन में कोई चर्चा नहीं होने देते  )
धर्म कोई भी हो इंसान सभी हैं पहले,
धर्म के नाम पे दंगा नहीं होने देते।
वादा कर लेते हैं फिर साफ़ मुकर जाते हैं,
वो सियासत को तो रुसवा नहीं होने देते।
रुठते और मना  लेते  हैं बारी - बारी ,
'नया' उनको कभी तनहा नहीं होने देते।
---- वी. सी. राय 'नया'

Thursday, 11 October 2012

YAAR KYA ?

FB के मित्रो ! एक ग़ज़ल देखिये - आशा है पसंद आयेगी ->
----------------- ग़ज़ल --------------------
पूछूँ  मैं इक सवाल बताओगे यार क्या ?
होने लगा है तुमको भी कुछ मुझसे प्यार क्या ?
अब फिर पिन्हाएगा कोई फूलों के हार  क्या ?
फूलों से जैसे  ज़ख्म मिले देंगे ख़ार  क्या ?
मायूस है ख़िजाँ  से तो ख़ुशबू को याद कर ,
आती नहीं  पलट के चमन में बहार क्या ?
देने को लोन मेले लगे  हैं   यहाँ - वहाँ ,
कुछ सब्र मिल सकेगा कहीं से उधार क्या ?
दरिया ये आग का है बचाए ख़ुदा उसे ,
कर लूँ मैं उसके हिस्से का भी सारा प्यार क्या ?
करता नहीं है कोई भी अब तो रफ़ू का काम ,
दामन  मेरा रहेगा युँही  तार - तार  क्या ?
दिल पर नहीं जो ज़ोर कोई  क्या 'नया' हुआ ,
दिल पर कभी किसी को रहा अख्तियार  क्या ?
---- वी . सी . राय 'नया'

Wednesday, 3 October 2012

MANDIR-MANDIR

FB के मित्रो !
कौमी एकता, आपसी सदभाव व भाईचारे को समर्पित एक मतला व कुछ शेर देखिए -
-------------------- ग़ज़ल / गीत ---------------------
मंदिर-मंदिर, मस्जिद-मस्जिद, गिरजे-गिरजे, गुरूद्वारे।
एक ही छवि बसती  है कैसे मज़हब हैं न्यारे-न्यारे।
हर मज़हब बस प्यार सिखाता, उससे, उसकी दुनिया से,
उसको माने चाहे  न  माने, उसको तो सब हैं  प्यारे।
नींद हुई आँखों से ओझल, आन बसे जब सांवरिया,
रत्न जटित सिंघासन उनका, नैन हमारे रतनारे।
भूली बिसरी यादें लेकर, ऋतुएँ आती-जाती हैं,
पावस, शिशिर, बसंत भी भरतीं विरही मन में अंगारे।
टेर रहा मन, हेर रहा तन, फेर रहा मन का मनका,
आ जा रे पिय, आजा रे तू, आजा रे अब आजा रे।
---- वी. सी. राय 'नया'